हाँ
इस सतरंगी, खूबसूरत ख़्वाबों वाली
खुदगर्ज़ दुनिया से
बस ढेला भर की दूरी पर ही
सफ़ेद कालर वाले आदमखोर अँधेरे ने
उस भदेस, निरीह बस्ती पर ढाये थे
पुलिसिया जुर्म,
हाँ
वहीं कहीं पर था
रात के ग़लीज़ गुनाहों का गवाह
एक डरा हुआ दश्त
जिसका गला काट कर उन्होने
उसकी लाश पर उगा दिया था
एक विद्रूप सा ठूँठों का शहर;
वहीं कहीं पर
कुछ लपलपाती लंपट जुबानों ने
कुछ पैने हिंसक नाखूनों ने
कुछ लोहे के सख्त हाँथों ने
दबोच लिया था
एक अशक्त, बूढ़े मौसम की
इकलौती, जवान हवा को,
वहीं कहीं पर
उन्होने गला घोंट कर की थी
एक मासूम चीख की भ्रूणहत्या;
हाँ
यहीं पर
कुछ सुलगते शब्दों को
सेंसर के सींखचे मे ठूँसा गया था,
यहीं पर
कुछ जवान बगावती ख्वाबों को
आँखों की देहलीज से
ताउम्र जलावतन कर दिया गया था,
यहीं पर
एक पागल कलम की रगों मे
रोशनाई की बजाय जहर भरा गया था,
यहीं पर
ज़मीन की कोख़ मे
बारूद बो कर बंजर कर दिया गया था,
यहीं पर
कुछ गुमनाम शख़्सों को
लटकाया गया था
लोहे की सख़्त सलीबों पर
जिनकी जुबान ने
पालतू होने से इनकार कर दिया था
इसी जगह पर
बेरहम, बहरे बूटों ने
बेजुबान, अधेड़ पीठों पर
कायम की थी
एक नृशंस सल्तनत,
इसी जगह पर
एक समूची भाषा को
जिन्दा दफ़्न कर दिया गया था
आदिम होने के अपराध में,
इसी जगह पर
कुछ ज़मीनी खुदाओं की बलि दी गयी थी
किन्ही आसमानी ख़ुदाओं के नाम पर,
इसी जगह पर
माज़ी के एक पुराने पुल को
जला दिया गया था
कि एक अजन्मे कल को
कभी न दिखें
एक मृतप्राय कल के
रक्तरंजित पदचिह्न
किसी अंधी नैतिकता के
कोमल पाँवों मे न चुभें
सच के काँटे;
हाँ
यहीं
इसी जगह पर
एक पूरी सभ्यता को
असभ्य होने के अपराध में
बेगुनाह होने के गुनाह मे
दे दिया गया था
मृत्युदंड.
मगर हाँ
इसी जगह पर
कल
बारूद की पकी फ़स्लों मे
आग के सुर्ख फूलों को
खिलना है,
इसी जगह पर
कल
रात की कोख से
रोशनी के किसी बीज को
आग-हवा-पानी-मिट्टी पा कर
अखुँआना है
बनना है
कल का तिमिरनाशी, सुलगता सूरज,
इसी जगह पर
कल
लोहे की सख़्त सलीबों पर लटके
कुछ गुमनाम शख़्सों को
बनना है
मुस्तक़बिल का मसीहा ।