Sunday, September 6, 2009

इस क्षण का दाह

जब तेरे होठों के सुर्ख अंगारों पे
छा जाते हैं
मेरे होठों के नर्म बादल
जब तेरी आँखों की आँच को
ढक लेते है
मेरे अक्स के ठंडे साये
जब पिघल जाता है
मेरी खामोशी का बेचैन आसमान
मुझमें

जब खो जाते हैं
सारे शब्द
सारी दिशायें,
सारे संत्रास
अगम शून्य मे

तब
हमारे होठों के बीच
पलता है
एक अव्यक्त पारदर्शी मौन
तब
तुम्हारी आँखों के जल मे
डूब जाता हूं मैं
थके सूर्य सा
तब
साँझ से रंग बदलते हैं
तुम्हारी आँखों मे
उभरते हैं बिम्ब, स्वप्न से,
फिर पिघल जाते हैं
सप्तवर्णी स्वर्ण में

तब
जी लेते हैं हम
तोड कर समय-बन्धन
एक पल, एक प्रहर, एक वर्ष,
एक शती
एक युग
एक कल्प
एक क्षण मे

क्या समय के उस पार भी है कोई
इच्छाओं का आकाश
जिसमे समा जाये
मेरी सारी अत्रप्ति
आकुलता
अपराध !

दे दो मुझे
अदम्य दुःखों की धरा
मत छीनो मुझसे
मेरा क्षण भर का स्वप्नाकाश
ले लो
मेरे सारे सुखोँ की उम्र
मत छीनो मुझसे
इस क्षण का दाह
इस क्षण का ताप
जल जाने दो मुझे
क्षण भर की अग्नि मे

जी लेने दो
इस एक पल में
बस
फिर मर जाने दो
मुझे.

32 comments:

  1. मेरे सारे सुखोँ की उम्र
    मत छीनो मुझसे
    इस क्षण का दाह
    इस क्षण का ताप
    जल जाने दो मुझे
    क्षण भर की अग्नि मे

    जी लेने दो
    इस एक पल में
    बस
    फिर मर जाने दो
    मुझे.

    एक प्रवाह है आपकी रचना मे जो दिल के खामोशियो को बडी ही खुबसूरती से उकेरा है .......और प्यार मे कत्ल हो जाने की इच्छा प्यार की चर्मोत्कर्ष ......वाह क्या खुब लिखा है आपने..
    बहुत बहुत आभार.

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  2. बहुत खुब भाई, दिल को छु गयी आपकी ये रचना। बधाई

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  3. lagta hai ki ek aur yogbhrasht mil gaya....

    aapka poora blog padh daala....

    ...badhiya likhte ho bhai...
    ...kuch t aisa ki agar aap na likhte to shayad bhavishya main main likh deta jaise:
    जब खो जाते हैं
    सारे शब्द
    सारी दिशायें,
    सारे संत्रास
    अगम शून्य मे

    ye prem nahi yahi to kundali jagrit karna hai dost.....

    ek aisi hi kahani likhi thi....
    ...post nahi ki kyunki shabd kuch unorthodox the par tumehin mail kar raha hoon.
    kyunki lagta hai main tumhein jaan paaya hoon...

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  4. bahut hi khubsurat rachna Apoorv ji. Laajawaab!!

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  5. भा गयी आपकी रचना.

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  6. बड़ा गहरा लिख रहे हो भाई..वाह!! बधाई. लिखते रहो.

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  7. अपूर्व जी,
    आपकी इस रचना से झांकता आकाश विस्तृत है, रंग और बिम्ब अनूठे हैं ! शाश्वत समय के मध्य इस ठहराव की आकांक्षा स्वाभाविक है; क्योकि जल पर उभर आया बुलबुला लहरों पर इतराने का इतना ही अवकाश तो मांगता है, जितना यह जीवन... अच्छी रचना... जीवन की शाश्वत कथा कहती हुई... सप्रीत-- आ.

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  8. जी लेने दो
    इस एक पल में
    बस
    फिर मर जाने दो
    मुझे.......

    AAJ PAHLI BAAR AAPKE BLOG PAR AAYA AUR LAGA BAHOOT KUCH KHO DIYA HAI MAINE .......... PYAAR KE ITNE LAJAWAAB, KHOOBSOORAT EHSAAS SIMETE HAI AAPKI RACHNA ...... SEEDHE DIL MEIN UTARTI HAI .... BAHOOT DILKASH ......

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  9. दे दो मुझे
    अदम्य दुःखों की धरा
    मत छीनो मुझसे
    मेरा क्षण भर का स्वप्नाकाश

    अच्छी लगी आपके दिल और कलम से निकली आवाज़, भले ही आपकी ये गुहार प्रेमी का प्रेमिका से है परन्तु लुटेरा तो लुटेरा है और भविष्य की और संकेत है जब स्वप्नाकाश भी छीने जायेंगें.

    एक गहरी भावुकता भरी कविता का तहे दिल से स्वागत है........

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  10. दे दो मुझे
    अदम्य दुःखों की धरा
    मत छीनो मुझसे
    मेरा क्षण भर का स्वप्नाकाश

    बहुत गहरे शब्द और भावः...अद्भुत रचना...वाह अपूर्व जी वाह...
    नीरज

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  11. Kitni achchhi kavita hai.....ise to shabdon mein nahi kah sakta..haan itna kah sakta hoon ki ise aatmsat karne ki koshish karoonga.
    Bahut dinon bad koi yuva mila hai jo itni achchhi kavita karta hai.
    Navnit Nirav

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  12. मत छीनो मुझसे
    इस क्षण का दाह
    इस क्षण का ताप
    जल जाने दो मुझे
    क्षण भर की अग्नि मे

    जी लेने दो
    इस एक पल में
    बस
    फिर मर जाने दो
    मुझे.


    महादेवी वर्मा ने कुछ ऐसा ही महसूसा होगा जब लिखा होगा...."रहने दो हे देव ,मेरा मिटने का अधिकार.."

    सुन्दर शब्द, गहरा विजन .....

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  13. तुम्हारी आँखों के जल मे
    डूब जाता हूं मैं
    थके सूर्य सा
    तब
    साँझ से रंग बदलते हैं
    तुम्हारी आँखों मे
    उभरते हैं बिम्ब, स्वप्न से,
    फिर पिघल जाते हैं
    सप्तवर्णी स्वर्ण में

    vah kya shandar shabd sayonjan hai

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  14. बहुत सुन्दर रचना....बहुत बहुत बधाई....

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  15. बहुत खूब .क्या बात है

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  16. तुम्हारी आँखों के जल मे
    डूब जाता हूं मैं
    थके सूर्य सा
    तब
    साँझ से रंग बदलते हैं
    तुम्हारी आँखों मे
    उभरते हैं बिम्ब, स्वप्न से,
    फिर पिघल जाते हैं
    सप्तवर्णी स्वर्ण में...
    kavita me pryogvaad ki shuruaat ne hame sach me rachnaao ke ras saagar me bahaa diyaa he/ ynha yadi ras aanshik milataa he to shaabdik artho me khelati, bahati nadiya ki laharo me aanand doobata-utarataa he/ aapki rachnaye vakai artho se paripoorna hoti he aour shayad isiliye aanand aataa he/aour hna, mere priya dost DARSHANji ki tippani yadi aapko prapt hui he to samjhiye..rachna ki saarthakta sidhdh ho gai/ bhai, aapka blog pasand aa gayaa he yaani ab aap खूब लिखो और हम खूब पढे।

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  17. ek baar aisa laga ki maine hi likhi hai ye kavita.......bahut jaani-pechani shaili si.....bilkul apne jaisi....itne varsho men pehli baar dekha koi mujh jaisa likhne wala....

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  18. मत छीनो मुझसे
    इस क्षण का दाह
    इस क्षण का ताप
    जल जाने दो मुझे
    क्षण भर की अग्नि मे

    जी लेने दो
    इस एक पल में
    बस
    फिर मर जाने दो
    मुझे.

    jal kar jee jaane ki chaahat...jee ke mar jaane ki khwahish...bahut khuub...sundar baat/rachna

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  19. जी लेने दो
    इस एक पल में
    बस
    फिर मर जाने दो
    मुझे. ...ek ek pal ko jee lene ki khoobsurat chahat.....

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  20. बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति, बधाई

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  21. Amitabhji aapki hi tarah acche insaan hai aproov ji,aur mere bahut acche dost bhi, isliye unhoniey aisi baat kahi hai...
    (Refer to mail send by you)

    anyatha aap ki lekhni ko koi pramaan patr ki zarrorat nahi....
    ...khaaskar mere jaise 'yog bhrasht' ki to nahi hi....


    ....एक पल, एक प्रहर, एक वर्ष,
    एक शती
    एक युग
    एक कल्प
    एक क्षण मे

    क्या समय के उस पार भी है कोई
    इच्छाओं का आकाश
    जिसमे समा जाये
    मेरी सारी अत्रप्ति
    आकुलता
    अपराध

    aapki aisi rachna padhkar 'alter ego' ke uppar vishwaas karne ka man hota hai....


    aapki rachnaao main ek alag si khusboo hai....

    apke blog aur aapki kavita ki taarif nahi kar paaonga....

    ...nahi to log kaheinge....

    "Examine is better than examiner"

    naga baba ke uppar aaiye aapki vistrit tippani ne mere hosle ko 'pancham' main pahuncha diya.
    Best Regards.
    Your Friend.

    ReplyDelete
  22. उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक
    ......

    ...ek vinti hai dost kya is line ko hata paaiyenge? kyunki is sher ka last part negative lagta hai, jo muh main apne aap hi aa jata hai.

    Swasth raho !! aur hamesha wohi dikho jo ho.
    ek acche insaan...
    ...bimaar ke paas to main jaata bhi nahi.

    (My sense of humor is bad that i know, tell me something new.....)

    ReplyDelete
  23. Apoorv ........ kya likha hai bhai ..... dil ke nadar utar yeh kavita...

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  24. बहुत ही सुन्दरतम भाव । आभार ।

    ReplyDelete
  25. क्या समय के उस पार भी है कोई
    इच्छाओं का आकाश
    जिसमे समा जाये
    मेरी सारी अत्रप्ति
    आकुलता
    अपराध !

    बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में होने के बावजूद अगर इस तरह के लेखन के लिए वक्त निकाल रहे हैं तो बहुत बड़ी बात है। दोनों ही बातों के लिए बधाई स्वीकार करें।
    मेरे ब्लॉग पर पधारने का शुक्रिया।

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  26. bahout khoob apoorv ji...accha likha hai aapne..samay aur momenet ka aapne acchi tarah se feel kiya hai...congrts...

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  27. अपूर्व जी टिप्पणी के लिये आभार. इस बहाने आपका ब्लाग को देखने और पढने का सौभाग्य मिला. यह जानकर अच्छा लगा कि आप गज़लें भी कहते हैं. ग़ज़ल बहुत प्यारी है.दिल की गहराइयों के निकट. उम्मीद है आगे भी मुलाकात होती रहेगी.

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  28. ye ziadgi bhi ab zindagi lagti nahi hai
    na malum hai ya galat hai or kya sahi hai
    charo taraf bas ek udasi nazar ati hai
    lut ta rehta hai chain or nind chali jati hai
    dimag bhi har pal sochta hi rehta hai
    kabi deta haisath mera kabhi kosta hi rehta hai
    na khatm hone wali daur hai ye kaisi
    kon hai humsafar mera kon hai sathi
    dil me jitne ka junoon badhta ja raha hai
    bikhta nai koi rasta fir b jhadta hi ja raha hai
    kabhi kabhi kuch kuch likhta hi rehta hu
    hota hai kya malum bas sochta hi rehta hu
    hat me kalam or dimag me shabdon ka jal hai
    fasta hi ja raha hu isme bas bura hal hai
    lagta hai mai sai hu or suljha hua hu
    apne hi sawalon me kyo uljha hua hu
    kon ayega mujhe bachane main nahi janta
    main bhi to ziddi hu nai maanta.

    ReplyDelete
  29. तुम्हारी आँखों के जल मे
    डूब जाता हूं मैं
    थके सूर्य सा
    तब
    साँझ से रंग बदलते हैं
    तुम्हारी आँखों मे
    उभरते हैं बिम्ब, स्वप्न से,
    फिर पिघल जाते हैं
    सप्तवर्णी स्वर्ण में


    ho gaya...kuchh hafton ka kaam dhaam

    ab roj chakkar honge yahan ke.

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